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Special Weekly Havan - (विशेष साप्ताहिक हवन)

    व्याहृति- आहुति मन्त्र

    निम्नलिखित मन्त्रों से घी की आहुतियाँ प्रदान करें।

    ओ३म् भूरग्नये स्वाहा ।। इदमग्नये-इदं न मम ।।१।।

    ओ३म् भुवर्वायवे स्वाहा ।। इदं वायवे-इदं न मम ।।२।।

    ओ३म् स्वरादित्याय स्वाहा ।। इदमादित्याय-इदं न मम ।।३।।

    ओ३म् भूर्भुव: स्वरग्निवाय्वादित्येभ्य: स्वाहा ।। इदमग्निवाय्वादित्येभ्य-इदं न मम ।। ४।।
    -गोभिल गृह्य. १.८.१४

    भावार्थ- हे ईश्वर! मैं ये घी की आहुतियाँ परोपकार की भावना से, सच्चे हृदय से युक्त होकर पृथिवी, अन्तरिक्ष और द्यु स्थानीय, अग्नि, वायु और सूर्य किरणों की शुद्धि के लिए प्रदान कर रहा हूँ। ये मेरे लिए नहीं हैं।

    पवमान आहुतय:

    निम्नलिखित चार मन्त्रों से आज्य= घी की आहुतियाँ प्रदान करें।

    ओ३म् भूर्भुव: स्व:। अग्न आयूंषि पवस आ सुवोर्जमिषं च न:।
    आरे बाधस्व दुच्छुनां स्वाहा ।। इदमग्नये पवमानाय-इदं न मम ।।१।।

    भावार्थ - हे सबके रक्षक, सबके प्राणाधार, दु:खविनाशक, सुख स्वरूप और ज्ञान स्वरूप प्रभो! आप कृपा करके हमारे दुर्गुणों और कुविचारों को दूर करके हमारे जीवन को पवित्र कीजिए। हमें सब प्रकार का बल, पराक्रम और ऐश्वर्य देकर सुखी कीजिए। इसी कामना से मैं यह आहुति आपके लिए प्रदान कर रहा र्हूँ । यह मेरे लिए नहीं है।

    ओ३म् भूर्भुव: स्व:। अग्निर्ऋषि: पवमान: पाञ्चजन्य: पुरोहित:।
    तमीमहे महागयं स्वाहा ।। इदमग्नये पवमानाय-इदं न मम ।।२।।

    भावार्थ- हे ईश्वर! आप ज्ञान स्वरूप, सबको देखने वाले और जानने वाले हो। आपकी सत्ता सृष्टि रचना के पहले से ही है। आप सबके हितकारी, सबको पवित्र करने वाले और सबके पूजनीय हो। हे प्रभो! इन गुणों से युक्त आपको हम प्राप्त करना चाहते हैं। इसी कामना से मैं यह आहुति आपके लिए प्रदान कर रहा हूँ। यह मेरे लिए नहीं है।

    ओ३म् भूर्भुव: स्व:। अग्ने पवस्व स्वपा अस्मे वर्च: सुवीर्यम्।
    दधद्रयिं मयि पोषं स्वाहा ।। इदमग्नये पवमानाय-इदं न मम ।।३।।
    -ऋग्वेद ९.६६.२१

    भावार्थ- हे सबके रक्षक, प्राण स्वरूप, दु:ख विनाशक, सुख स्वरूप और ज्ञान स्वरूप प्रभो! आप हम सब उत्तम कर्म करने वालों को पवित्र करके हमें तेज, पराक्रम, धन और समग्र ऐश्वर्य देकर पुष्ट कीजिए। इसी कामना से मैं यह आहुति आपके लिए प्रदान कर रहा हूँ। यह मेरे लिए नहीं है।

    ओ३म् भूर्भुव: स्व:। प्रजापते न त्वदेतान्यन्यो विश्वा जातानि परिता बभूव।
    यत्कामास्ते जुहुमस्तन्नो अस्तु वयं स्याम पतयो रयीणां स्वाहा ।। इदं प्रजापतये-इदं न मम ।।४।।
    -ऋग्वेद १०.१२१.१०

    भावार्थ- हे सम्पूर्ण प्रजा के पालक ईश्वर! इन समस्त लोकों का आपसे भिन्न कोई दूसरा पालन करने वाला स्वामी नहीं है। आप ही सबके आधार हो। हे ईश्वर! हम जिस-जिस कामना से युक्त होकर आपकी उपासना करें, आप हमारी वह कामना पूर्ण करो, जिससे हम धन-ऐश्वर्यों के स्वामी हो जायें।

    स्विष्टकृत्- आहुति मन्त्र

    निम्नलिखित मन्त्र का उच्चारण करके घी अथवा भात= पानी में पकाये हुए नमक रहित चावल की एक आहुति प्रदान करें।

    ओ३म्। यदस्य कर्मणोऽत्यरीरिचं यद्वा न्यूनमिहाकरम्। अग्निष्टत् स्विष्टकृद्विद्यात् सर्वं स्विष्टं सुहुतं करोतु मे। अग्नये स्विष्टकृते सुहुतहुते सर्वप्रायश्चित्ताहुतीनां कामानां समर्द्धयित्रे सर्वान्न: कामान्त्समर्द्धय स्वाहा । इदमग्नये स्विष्टकृते-इदं न मम ।।
    -आश्व. गृ. १.१०.२२

    भावार्थ- हे ज्ञान स्वरूप सर्वज्ञ परमेश्वर! आज मैंने यह शुभ कर्म यज्ञ किया है। इसमें अज्ञानतावश यदि कोई विधि अधिक हो गयी है अथवा कोई कमी रह गयी है, तो आप उसको पूर्ण किया हुआ कर्म मानकर सफल बनाने की कृपा करो और हमारी सभी कामनाओं को पूर्ण करो। इसलिए मैं ज्ञान स्वरूप, सर्वज्ञ, यज्ञ कर्म को पूर्ण करने वाले, अच्छे प्रकार जिसके लिए आहुतियाँ दी गयी हैं और सब कामनाओं को पूर्ण करने वाले हे प्रभो! आपके लिए यह प्रायश्चित्त आहुति प्रदान कर रहा हूँ।

    प्राजापत्य आहुति मन्त्र

    निम्नलिखित मन्त्र से मौन रहकर अर्थ विचार करते हुए एक आहुति घी की प्रदान करें।

    ओ३म् प्रजापतये स्वाहा ।। इदं प्रजापतये-इदं न मम ।।
    -पारस्कर गृह्य सूत्र १.११.३

    भावार्थ- हे समस्त प्रजा के पालक ईश्वर! आज मैंने जो यह अग्निहोत्र यज्ञ किया है, वह सब आपको समर्पण कर रहा हूँ।

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