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Makar Sankranti - (मकर संक्रान्ति)

उत्तरायण (उत्तर - आयन)

ओ३म् सहश्च सहस्यश्च हैमन्तिकावृतू।
अग्नेरन्तः श्लेषोऽसि स्वाहा।।

कल्पेताम् द्यावापृथिवी स्वाहा।
कल्पन्ताम् आप ओषधयः स्वाहा। कल्पन्ताम् अग्नयः पृथङ् मम ज्यैष्ठ्याय सव्रताः स्वाहा।।

ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे।
हैमिन्तकावृतू अभिकल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभि संविशन्तु तया देवतयाऽगिंरस्वद् ध्रुवे सीदतम् स्वाहा।। 
यजु. 14। 27

ओ३म् तपश्च शैशिरावृतू,
अग्नेरन्तः श्लेषोऽसि स्वाहा।।

कल्पेताम् द्यावापृथिवी स्वाहा।
कल्पन्ताम् आप ओषधयः स्वाहा।
कल्पन्ताम् अग्नयः पृथङ् मम ज्यैष्ठ्याय सव्रताः स्वाहा।।

ओ३म् ये अग्नयः समनसोऽन्तरा द्यावापृथिवी इमे।
शैशिरावृतू अभिकल्पमाना इन्द्रमिव देवा अभिसंविशन्तु तया देवतयाऽगिंरस्वद् ध्रुवे सीदतम् स्वाहा।।

यजु. 15। 57

ओ3म् भूर्भुवः स्वः। तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्।। 
(यजु 36/3) इस मन्त्र से तीन बार केवल घृत से आहुतियां दे

पूर्णाहुति-मन्त्राः

ओं सर्वं वै पूर्ण ँ् स्वाहा
इस मन्त्र से तीन बार केवल घृत से आहुतियां देकर अग्नि होत्र को पूर्ण करें।

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